खरीफ योजना बनाते समय इस बात पर विशेष ध्यान देना होगा कि हम कुछ क्षेत्र में पशुओं के लिए पौष्टिक चारों को उगाने की योजना अवश्य बनायें और ऐसे फसल चक्र अपनायें जिससे खाद्यान उत्पादन के साथ-साथ पशुओं को पौष्टिक चारा भी उपलब्ध हो सके। खरीफ के कुछ पौष्टिक चारे निम्नवत् हैं
लोबिया
इसका चारा अत्यन्त पौष्टिक होता है जिसमें 17 से 18 प्रतिशत प्रोटीन पाई जाती है। कैल्शियम तथा फास्फोरस भी पर्याप्त मात्रा में होता है। यह अकेले अथवा गैर दलहनी फसलों जैसे ज्वार या मक्का के साथ बोई जा सकती है।
भूमि
इसकी खेती दोमट या बलुई और हल्की काली मिट्टी में की जा सकती है। भूमि का जल निकास अच्छा होना चाहिए।
भूमि की तैयारी
एक जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से तथा 2-3 जुताइयां देशी हल या कल्टीवेटर से करनी चाहिए।
उन्नत किस्में
रशियन जायन्ट यू.पी.सी.-5286,5287 एन.पी.-3 (ई.सी.-4216) बुन्देल लोबिया-2 (आई.एफ.सी.-8401), बुन्देल लोबिया-2 (आईएफ.सी.-8503) यू.पी.सी.-9202 यू.पी.सी.-4200 यू.पी.सी.-8705।
बीज उपचार
2.5 ग्राम थीरम प्रति किग्रा. बीज की दर से बीज उपचारित करना चाहिए। राइजोबियम कल्चर का भी प्रयोग करना उचित होगा।
बुवाई का समय
वर्षा प्रारम्भ होने पर जून-जुलाई के महीने में इसकी बुवाई करनी चाहिए।
बीज की दर
अकेले बोने के लिए प्रति हेक्टर 40 किग्रा. बीज पर्याप्त होता है। मक्का या ज्वार के साथ मिलाकर बुवाई के लिए 15-20 किग्रा. बीज प्रयोग करना चाहिए।
बुवाई की विधि
बीज की बुवाई हल के पीछे कूंड़ों में करना अच्छा रहता है। लाइन से लाइन की दूरी 30 सेमी. रखना चाहिए। मिलवां खेती में बुवाई अलग-अलग 2 रू 1द्ध लाइनों में करनी चाहिए।
उर्वरक
बुवाई के समय 15.20 किग्रा. नत्रजन तथा 50-60 किग्रा. फास्फोरस प्रति हेक्टर प्रयोग करना चाहिए।
सिंचाई
खरीफ में बोई गई फसल की सिंचाई की आवश्यकता नहीं पड़ती है। वर्षा न होने पर आवश्यकतानुसार सिंचाई करनी चाहिए।
कटाई
फली बनने की अवस्था में फसल चारे की कटाई के योग्य हो जाती है। यह अवस्था बुवाई के 2 से ढाई माह बाद आती है।
उपज
प्रति हेक्टर 250-300 कुन्तल हरे चारे की उपज प्राप्त हो जाती है।
ज्वार
ज्वार खरीफ में चारे की मुख्य फसल है। देशी किस्मों में प्रोटीन कम होने से यह एक अपूर्ण निर्वाहक आहार माना जाता है परन्तु उन्नतिशील किस्मों में 7-9 प्रतिशत तक प्रोटीन पायी जाती है जिससे ये किस्में निर्वाहक आहार हैं, जिसकी खेती करना लाभदायक है।
भूमि
दोमट, बलुई दोमट तथा हल्की और औसत काली मिट्टी जिसका जल निकास अच्छा हो, ज्वार की खेती के लिए अच्छी है।
भूमि की तैयारी
एक जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से तथा 2-3 जुताइयां देशी हल से करनी चाहिए।
उन्नत किस्में
मीठी ज्वार (रियो) पी.सी. 6 पी.सी. 9 यू.पी. चरी 1 व 2 पन्त चरी-3, एच.सी. 308 हरियाना चरी-171, पंत चरी-4।
बुवाई का समय
ज्वार की बुवाई जून/जुलाई में कर देनी चाहिए। वर्षा न होने की दशा में बुवाई पलेवा करके करना चाहिए।
बीज की दर
छोटे बीजों वाली किस्मों जैसे (मीठी ज्वार) रियों का बीज 25-30 किग्रा. तथा दूसरी किस्मों का 30-40 किग्रा. प्रति हेक्टर रखना चाहिए। इसे फलीदार फसलें जैसे लोबिया के साथ 2रू 1 के अनुपात में बोना चाहिए।
बुवाई की विधि
बीज की बुवाई हल के पीछे 30 सेमी. की दूरी पर बोयें।
उर्वरक
उर्वरक का प्रयोग मिट्टी परीक्षण के आधार पर करना अच्छा रहता है। सामान्य तौर पर 80-100 किग्रा. नत्रजन तथा 40 किग्रा. फास्फोरस प्रति हेक्टर देने से चारे की अच्छी उपज प्राप्त की जा सकती है। नत्रजन की आधी मात्रा तथा कुल फास्फोरस बुवाई के समय खेत में डालना चाहिए। शेष आधी मात्रा नत्रजन बुवाई के 25-30 दिन बाद टाप ड्रेसिंग करना चाहिए। मिलवा फसल में 60 किग्रा. नत्रजन 40 किग्रा. फास्फेट का प्रयोग करें।
सिंचाई
जून में बुवाई करने पर सूखे की स्थिति में 1 या 2 सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है।
कटाई
फसल चारे के लिए 60-70 दिनों में कटाई योग्य हो जाती है। पौष्टिक चारा प्राप्त करने हेतु कटाई फूल आने पर करना चाहिए।
उपज
किस्मों के अनुसार हरे चारे की उपज लगभग 250-450 कुन्तल तक हो जाती है।
बहु कटान वाली ज्वार
एम.पी. चरी एवं पूसा चरी 23, एस.एस.जी. 89-8 (मीठी सुडान) एम.एफ.एस.एच. 3ए पंत सकर ज्वार-5 इन्हें एक से अधिक कटाई के लिए ज्वार की सबसे अच्छी किस्म माना गया है। इसमें 7-9 प्रतिशत प्रोटीन होती है। तथा ज्वार में पाया जाने वाला विष हाइड्रोसायनिक अम्ल भी कम होता है।
भूमि
दोमट भूमि, जिसका जल निकास अच्छा हो, इसकी खेती के लिए सर्वोत्तम है।
भूमि की तैयारी
एक जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से तथा एक या दो जुताइयां देशी हल से करना चाहिए।
बुवाई का समय
प्रथम वर्षा होने पर जून, जुलाई में करनी चाहिए। सिंचाई साधन उपलब्ध होने पर बुवाई अप्रैल-मर्इ में भी की जा सकती है।
बीज दर
25-30 किग्रा. प्रति हे. बीज की आवश्यकता होती है।
बुवाई की विधि
प्रायः इसको छिटकवां बोते हैं, परन्तु मिलवां खेती में हल के पीछे बुवाई करना अच्छा रहता है।
उर्वरक
120-150 किग्रा. नत्रजन तथा 40 किग्रा. फास्फेट प्रति हेक्टर की दर से प्रयोग करके अच्छी उपज प्राप्त की जा सकती है। नत्रजन की आधी मात्रा तथा पूरा फास्फोरस बुवाई के समय खेत में डालना चाहिए। शेष नत्रजन का प्रयोग बराबर-बराबर मात्रा में बुवाई के 25-30 दिन बाद, प्रथम कटाई पर तथा बाद की अन्य कटाइयों पर 15-20 किग्रा./हेक्टर की दर से प्रयोग करना चाहिए।
सिंचाई
सूखे की अवस्था में 1 या 2 सिंचाइयों की आवश्यकता होती है।
कटाई
पहली कटाई बुवाई के 50-60 दिन बाद करना चाहिए। इसके बाद हर 30-35 दिन बाद फसल काटने योग्य हो जाती है। इसकी तीन कटाइयॉ प्राप्त की जा सकती है। यदि बीज इकट्ठा करना हो तो एक बार से अधिक कटाई नहीं करनी चाहिए।
उपज
हरे चारे की उपज 750 से 800 कुन्तल प्रति हेक्टर प्राप्त हो जाती है।
मक्का
मक्का की खेती चारा तथा दाना दोनों के लिए की जाती है। इसका चारा मुलायम होता है तथा पशु चाव से खाते है। यह एक निर्वाहक आहार है। इसमें फलीदार फसलों की खेती जैसे लोबिया के साथ 2रू1 के अनुपात में की जानी चाहिए।
भूमि
अच्छे जल निकास वाली दोमट, बलुई दोमट भूमि इसकी खेती के लिए उपयुक्त है।
भूमि की तैयारी
एक जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से तथा एक या दो जुताइयां देशी हल से करके भूमि तैयार की जाती है।
उन्नत किस्में
प्रायः दाने वाली जातियां चारे के काम में लाई जाती हैं। संकर मक्का में प्रोटीन, गंगा-2, गंगा-5, गंगा-7 संकुल मक्का में किसान, अफ्रीकन टाल और विजय तथा देशी में टाइप-41 मुख्य किस्में हैं। संकर मक्का के बीज में उत्पादित बीज चारे की बुवाई में प्रयोग किया जा सकता है।
बुवाई का समय
जून या जुलाई में पहली वर्षा होने पर इसकी बुवाई करनी चाहिए।
बीज दर
40-50 किग्रा. प्रति हेक्टर बीज शुद्ध फसल की बुवाई के लिए पर्याप्त होता है। फलीदार चारे जैसे लोबिया के साथ 3:1 के साथ मिलाकर बोना चाहिए।
बुवाई की विधि
बीज लाइनों में 30 सेमी. की दूरी पर बोना चाहिए।
उर्वरक
संकर तथा संकुल किस्मों में 80 से 100 किग्रा. तथा देशी किस्मों में 50-60 किग्रा. प्रति हे. की दर से नत्रजन की दो तिहाई मात्रा बुवाई के समय तथा शेष एक तिहाई बुवाई के 30 दिन बाद खेतों में डालना चाहिए।
सिंचाई
वर्षाकाल में बुवाई करने पर सिंचाई की आवश्यकता नहीं पड़ती है।
कटाई
प्रायः मादा मंजरियों के निकलने की अवस्था में फसल चारे के लिए काटनी चाहिए। यह अवस्था बुवाई के 65 से 75 दिन बाद आ जाती है।
उपज
हरे चारे की औसत उपज लगभग 250-300 कुन्तल प्रति हेक्टर होती है।
मकचरी
मकचरी की यह विशेषता है कि एक ही कल्ले से अनेक कल्ले फूटते हैं, जिसके कारण एक छोटा सा समूह बन जाता है। प्रति हेक्टर 40 किग्रा. बीज की आवश्यकता होती है इसकी बोने की विधि मक्का के समान है। 100 किग्रा. नत्रजन तथा 40 किग्रा. फास्फोरस प्रति हेक्टर की दर से प्रयोग करना चाहिए। फसल बुवाई के 2-5.3 माह बाद चारे की कटाई के योग्य होती है। एम.पी. चरी की भांति इसकी भी दो से तीन कटाइयां प्राप्त की जा सकती हैं परन्तु उपज उससे कुछ कम होती है।
ग्वार
ग्वार शुष्क क्षेत्रों के लिए एक पौष्टिक एवं फलीदार चारे की फसल है। यह प्रायः ज्वार या बाजरे के साथ मिलाकर बोया जाता है। इसमें प्रोटीन 13-15 प्रतिशत पाई जाती है।
भूमि
बलुई, दोमट भूमि, जिसमें पानी न भरता हो, इसकी खेती के लिए उपयुक्त है।
भूमि की तैयारी
2 या 3 जुताइयां देशी हल से करके मिट्टी भुरभुरी बना लेना चाहिए।
उन्नत किस्में
टाइप-2 एफ.एस.-277 एवं एच.एफ.जी.-119 एच.एफ.जी.-156 बुन्देल ग्वार-1 (आई.जी.एफ.आर.आई.-212-9) बुन्देल ग्वार-2 आई.जी.एफ.आर.आई.-2 मुख्य हैं।
बुवाई का समय
प्रथम मानसून के बाद जून या जुलाई में इसकी बुवाई करनी चाहिए।
बीज दर शुद्ध फसल के लिए 40-45 किग्रा. बीज प्रति हे. की दर से प्रयोग करना चाहिए। मिलवां फसल में बीज की मात्रा 15-16 किग्रा. प्रति हे. रखी जाती है।
बुवाई की विधि
बुवाई छिटकवां विधि से की जा सकती है परन्तु मिलवां खेती में लाइनों में हल के पीछे बुवाई करना अच्छा रहता है।
उर्वरक
15-20 किग्रा. नत्रजन तथा 40-45 किग्रा. फास्फोरस प्रति हे. की दर से प्रयोग करने पर अच्छी उपज प्राप्त होती है।
सिंचाई
प्रायः फसल को सिंचाई की आवश्यकता नहीं पड़ती है।
कटाई
ग्वार की कटाई पुष्पावस्था (बुवाई के 2 माह बाद) या फली बनने की अवस्था में करना चाहिए।
उपज
हरे चारे की औसत उपज 150-225 कु. प्रति हे. है।
बाजरा
यह शीघ्रता से बढ़ने वाली रोग निरोधक तथा अधिक कल्ले फूटने वाली चारे की फसल है। शुष्क एवं अर्थ शुष्क क्षेत्रों में इसकी बुवाई की जाती है। यह अकेले अथवा दलहनी फसलों जैसे लोबिया या ग्वार के साथ मिलाकर बोई जाती है।
भूमि
बलुई दोमट भूमि इसकी खेती के लिए अच्छी है। यह हल्की भूमि से भी भली प्रकार पैदा हो जाती है।
भूमि की तैयारी
2 या 3 जुताइयां देशी हल से करनी चाहिए।
उन्नत किस्में
चारे के लिए संकर बाजरा की द्वितीय पीढ़ी के बीज का प्रयोग करना चाहिए। जाइन्ट बाजरा, राजबो बाजरा, राज बाजरा-2
बुवाई का समय
पहली वर्षा होने पर जुलाई माह में बुवाई करनी चाहिए।
बीज दर
शुद्ध फसल के लिए 12-15 किग्रा. बीज पर्याप्त होता है। मिलवां फसल में बाजरा तथा लोबिया/ग्वार 2:1 अनुपात में (2 लाइन बाजरा तथा एक लाइन लोबिया/ग्वार) बोना चाहिए, जिसके लिए 6-7 किग्रा. बाजरा तथा 12-15 किग्रा. लोबिया बीज की आवश्यकता पड़ती है।
बुवाई की विधि
छिटकवां, परन्तु मिलवां फसल में लाइनों में बुवाई करनी चाहिए।
उर्वरक
120 किग्रा. नत्रजन 40 किग्रा. फास्फेट प्रति हेक्टर की दर से प्रयोग करना चाहिए। नत्रजन का आधी मात्रा बुवाई के समय तथा शेष आधा भाग दो बार में बराबर-बराबर पहला 25-30 दिन तथा दूसरा भाग प्रथम कटाई के बाद नमी की दशा में डालना चाहिए।
सिंचाई
वर्षाकाल में बोई गयी फसलों को सिंचाई की आवश्यकता नहीं पड़ती है।
कटाई
बाजरे की दो से तीन कटाइयां की जा सकती हैं। पहली कटाई बुवाई के 45-50 दिन बाद तथा फूल निकलने से पूर्व निकलते समय करना चाहिए।
उपज
हरे चारा की औसत उपज 400-500 कुन्तल प्रति हेक्टर हो जाती है।
हाइब्रिड नेपियर
वर्षभर हरा चारा उपलब्ध कराने के लिए हाइब्रिड नेपियर की खेती किया जा सकता है। इसकी पत्तियॉ काफी मुलायम, लम्बी एवं हरी होती हैं। इसे बरसीम के साथ 6रू6 अनुपात में भी सह-फसली के रूप में भी उगाया जा सकता है। हाइब्रिड नेपियर को किसान अपने प्रक्षेत्र के चारों ओर बाढ़ (फेंसिंग) के रूप में उगा सकते हैं जिससे उन्हें हरे चारे के साथ-साथ फसल सुरक्षा भी प्रदान हो जाता है।
प्रमुख प्रजातियॉ
पूसा जाइन्ट नेपियर. एन.बी.-5 एन.बी.-21 ई.बी.-4, गजराज, कोयम्बटूर एवं इगफ्री नेपियर।
भूमि का चुनाव
समस्याग्रस्त प्रक्षेत्र (ऊसर, अम्लीय, क्षारीय, मृदा, ऊॅची नीची जमीन इत्यादि क्षेत्र)
- जड़ (स्लिप्स) की संख्या 25000 से 30000 प्रति हेक्टेयर।
- स्लिप्स लगाने का समय वर्षा ऋतु प्रारम्भ होने पर अथवा फरवरी का मध्य पखवारा।
- लगाने की विधि 50-50 सेमी. की दूरी पर 6 से 9 इंच गहरा गड्ढा खोदकर इच्छित स्थान पर जगह-जगह लगा दें।
- उर्वरक 10 टन/ हेक्टर गोबर की सड़ी खाद गड्ढों में भरे।
अन्य सुझाव
हरे चारे के लिए किसान सुबबूल को भी उगा सकता है। यह एक वृक्षनुमा पौधा होता है जिससे वर्ष भर हरा चारा मिलता है। लेकिन इस बात का विशेष सावधानी रखनी पड़ती है कि इसे 15 प्रतिशत हरी पत्तियॉ सूखे चारे के साथ मिलाकर पशुओं को खिलाया जा सकता है। सुबबूल लगाकर किसान अपने प्रक्षेत्र की रखवाली भी कर सकता है।