मछली बीज को कृत्रिम आहार देने की आवश्यकता होती है। कृत्रिम आहार तैयार करने हेतु निम्न पदार्थों का दर्शाई गई मात्रा में प्रयोग किया जाता हैः-
मूंगफली की खली अथवा सरसों की खली – 35%
राइस ब्रान-धान की फक या चावल की भूसी -38%
सोयाबीन की खली – 20%
फिश मील-मछली का चूरा – 5%
मिनरल मिक्सचर – 1.5%
एसकोरबिक एसिड – 0.5%
उपरोक्त में फिश मील तथा उसके बाद के दो तत्व उपलब्ध न हों तो भी बाकी के तत्वों को मिला कर मिश्रित आहार तैयार कर लिया जाता है। उपरोक्त मिश्रण में से निश्चित मात्रा में आहार शाम को भिगोकर सुबह-दोपहर तथा सायं निश्चित स्थान व निश्चित समय पर तालाब में डाला जाता है। भीगे व गीले मिश्रण में से गोले बटोर कर तालाब में डाले जाते हैं। इसके अतिरिक्त सीमेंट के खाली बैग में मिश्रित भीगा आहार डाल कर उसका मुंह रस्सी से बांध दिया जाता है तथा बीरू (थैला) के पैंदे में विभिन्न स्थानों पर सुराख कर दिए जाते हैं। इस थैले को तालाब के किनारे किसी खूंटे से बांध कर तालाब के पानी में डूबो दिया जाता है। मछली इन सुराखों से अपना आहार ग्रहण करती रहती है तथा बाद में थैला पानी से बाहर निकाल कर यह जांच कर ली जाती है कि आहार शेष तो नहीं है। इस प्रकार कृत्रिम आहार व्यर्थ नहीं जाता है।
इसके अतिरिक्त कृत्रिम आहार देने के लिए एक अन्य विधि अपनाई जाती है जिसमें धातु का बर्तन चिलमची (तसला/ बट्ठल) प्रयोग किया जाता है। बर्तन में आहार डाल कर उसको तराजू के छाबे की तरह बांध कर लम्बी रस्सी द्वारा किनारे से बांध कर तालाब के पानी में अर्धडूबी अवस्था में तैराया जाता है। अर्धडूबी अवस्था में रखने हेतू इस बर्तन को 30 से 40 सें.मी. लम्बी रस्सी द्वारा लकड़ी के तखते से बांध दिया जाता है। लकड़ी का तखता पानी की सतह के ऊपर तैरता रहता है तथा बर्तन पानी में डूबा रहता है। इस प्रकार तालाब की मछलियां अपना आहार ग्रहण करती रहती है तथा वायु वेग से बर्तन की गति के साथ-साथ तालाब में भ्रमण करती रहती हैं जिससे उनका शारीरिक व्यायाम भी होता रहता है। बर्तन में बचे आहार का पुनः उपयोग हो जाता है।
कृत्रिम आहार देने की दर
प्रत्येक माह तालाब में से कुछ मछली पकड़ कर उसका भार ज्ञात कर लें। इसके लिए दो व्यक्ति कपड़े की लम्बी चादर तान कर तालाब में खींचे। कुछ मछली उसमें आ जाएंगी। किसी पतीले में पानी डाल कर उसे तराजू से तोल लें। बाद में इस पानी वाले बर्तन में जीवित मछली डाल कर तराजू से तोल लें। भार में जो अंतर है वह पकड़ी गई मछली की संखया का भार है। इसके आधार पर आप तालाब में विद्यामान
सम्पूर्ण मछली का अनुमानित भार ज्ञात कर सकते हैं। प्रत्येक माह में उक्त क्रिया द्वारा सम्पूर्ण मछली का औसतन भार ज्ञात करना होगा तथा निम्नानुसार कृत्रिम आहार देना होगाः
प्रथम माह – सम्पूर्ण मछली के शारीरिक भार का 7 से 10%
द्वितीय माह – सम्पूर्ण मछली के शारीरिक भार का 5 से 7%
तृतीय माह – सम्पूर्ण मछली के शारीरिक भार का 2 से 3%
चतुर्थ माह व आगे- सम्पूर्ण मछली के शारीरिक भार का 2%
उपरोक्त को साधारण शब्दों में इस प्रकार व्यक्त किया जा सकता है कि मान लो तालाब में विद्यामान सम्पूर्ण मछली का भार 50 कि. ग्रा. बनता है तो उसे प्रथम माह में 3.5 से 5.0 कि. ग्रा. दैनिक आहार देने की आवश्यकता है। इसी प्रकार 50 कि.ग्रा. सम्पूर्ण शारीरिक भार हेतु दूसरे महीने में 2.5 से 3.5 कि.ग्रा. तथा तीसरे महीने में 1 से 1.5 कि.ग्रा. तथा चौथे महीने में 1.0 कि.ग्रा. दैनिक आहार की आवश्यकता होगी । कृत्रिम आहार ग्रहण करने बारे मछली का रूझान निम्नानुसार हाकता हैः-
प्रातः 5 से 8 बजे तक — उच्च (हाई)
दोपहर 12 बजे — मध्यम (मीडियम)
सांय 4 बजे — साधारण (नॉरमल)
ग्रास कार्प के आहार हेतु
ग्रास कार्प मछली अपने भारीरिक भार से डेढ़ गुणा अधिक मुलायम प्रकार के घास आहार के रूप में ग्रहण कर लेती है। बरसीम, हाईड्रीला, कारा वैलस्नीरिया इत्यादि प्रकार की वनस्पति का प्रयोग यह मछली बड़े चाव से करती है। इसके अतिरिक्त केले के लम्बे-लम्बे पत्तों का भी भरपूर प्रयोग करती है। इसके आहार हेतू नालों में तथा पानी के किनारे उगे हुए प्रत्येक प्रकार के घास का प्रयोग किया जा सकता है। प्रयोगों द्वारा साबित हुआ है कि 25.0 कि.ग्रा. घास 1.0 कि.ग्रा. मछली में परिवर्तित हो जाता है।
कृत्रिम आहार में सावधानी
यदि वांछित मात्रा से अधिक मात्रा में कृत्रिम आहार तालाब में डाला जाएगा, जिसका मछली उपयोग नहीं करेंगी तो उसके कारण तालाब का रंग गहरा हरा हो जाएगा तथा तालाब की सतह पर काई (एलगल ब्लूम) जमनी शुरू हो जाएगी । ऐसी अवस्था में कृत्रिम आहार देना बंद कर दें। इसके साथ-साथ यह भी ध्यान देने योग्य है कि सर्दी बढ़ जाने पर पानी का तापमान काफी कम हो जाता है। उस अवस्था में भी मछली कृत्रिम आहार कम ग्रहण करती है। अतः सर्दियों में कृत्रिम आहार की मात्रा कम कर देनी चाहिए तथा गर्मियों में बढ़ा देनी चाहिए।
तालाब में पाली जाने वाली मछली के कृत्रिम आहार हेतु गली-सड़ी सब्जियां, आलू, रसोई घर का शेष बचा व्यर्थ का खाना, आटा, चक्कियों के पास सफाई किया गया पदार्थ, सेब का छिलका, मक्की, धान, गेहूं व दालों की वेस्टेज इत्यादि सभी का प्रयोग किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त ताजे गोबर को तालाब के किनारों पर मासिक आवश्यकता अनुसार डालते रहना चाहिए।