Sunfloer Cultivation : अब किसान फल-सब्जियों की खेती के साथ साथ फूलों की खेती भी कर रहे हैं। किसानों के लिए फूलों की खेती अधिक लाभदायक है। इससे किसानों को अच्छा मुनाफा होता है। सूरजमुखी की रोपाई कर किसान अच्छा मुनाफा प्राप्त कर सकते हैं। इसकी खेती कर्नाटक, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, उड़ीसा, तमिलनाडु और बिहार में व्यापक रूप से की जाती है। सूरजमुखी की खेती खरीफ, रबी और ग्रीष्म तीनों मौसमों में की जा सकती है। यदि आप सुरजमुखी के साथ साथ मधुमक्खी पालन व्यवसाय भी करते हैं, तो आपको शहद की बिक्री से ज्यादा फायदा हो सकता है।
सूरजमुखी की खेती करने से अधिक उपज मिलती है। सूरजमुखी की फसल आमतौर पर 80 से 100 दिनों में आ जाती है। यह फसल एकाधिक दोहरी फसल, क्रमिक फसल और अंतरफसल प्रणाली के लिए उपयुक्त है और यह कम पानी में आती है। पानी के तनाव को झेलने से रोपण लागत कम होती है। इस वजह से किसानों के लिए सूरजमुखी की खेती फायदेमंद है।
मध्यम से गहरी मिट्टी में बुआई की दूरी 45 सेमी * 30 सेमी, भारी मिट्टी में 60 सेमी *30 सेमी होनी चाहिए। सूरजमुखी की बुआई के लिए प्रति हेक्टर उन्नत किस्मों के आठ से दस किलोग्राम बीज तथा संकर किस्मों के पांच से छह किलोग्राम बीज का प्रयोग करना चाहिए।
रासायनिक खाद :
शुष्क भूमि वाली फसलों के लिए बुआई के समय प्रति हेक्टर 2.5 टन गोबर के साथ 50 किलोग्राम या 25 किलोग्राम फास्फोरस और 25 किलोग्राम पलाश बोना चाहिए। उद्यानिकी फसलों के लिए 60 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस, 60 किलोग्राम पलाश प्रति हेक्टेयर देना चाहिए। इसमें से 30 किलोग्राम नाइट्रोजन एवं पूर्ण फास्फोरस तथा पलाश को बुआई के समय तथा 30 किलोग्राम नाइट्रोजन को बुआई के एक महीने के अन्दर डालना चाहिए। सल्फर की कमी वाली भूमि के लिए 20 किलोग्राम सल्फर प्रति हेक्टेयर के हिसाब से केंचुआ चारे में बुआई के समय मिलाना चाहिए। पत्ते, डंठल तथा फूलों का पिछला भाग पीला पड़ जाने पर फसल की कटाई कर लेनी चाहिए। अच्छी तरह सुखाकर फिर उसकी मड़ाई कर लेनी चाहिए।