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Home » agricultural education day special : राष्ट्रीय कृषि शिक्षा दिन मनाते समय नजरअंदाज की गई कृषि शिक्षा।
कृषी-चर्चा

agricultural education day special : राष्ट्रीय कृषि शिक्षा दिन मनाते समय नजरअंदाज की गई कृषि शिक्षा।

IshitaPGBy IshitaPGDecember 4, 2023No Comments6 Mins Read
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agricultural education day special : अनुसंधान और शिक्षा कृषि विकास का मुख्य आधार है। महाराष्ट्र में कृषि शिक्षा 1905 से चल रही है। महाराष्ट्र राज्य कृषि शिक्षा में हमेशा अग्रणी रहा है। वर्तमान में राज्य में 41 सरकारी कृषि और कृषि संबद्ध महाविद्यालय हैं। 2001 तक महाराष्ट्र में 14 सरकारी कृषि महाविद्यालय थे। 2003 के बाद प्रायव्हेट महाविद्यालयों को अनुमति मिलने के बाद राज्य में निजी कृषि महाविद्यालयों की संख्या बढ़ गई। आज 142 कृषि एवं कृषि से संबंधित प्रायव्हेट कॉलेज हैं। इनमें से कुछ कॉलेज बहुत अच्छे हैं,जबकि अन्य बहुत खराब स्थिति में हैं। वे किसी भी मानदंड पर खरे नहीं उतरते। उनमें न तो आवश्यक सुविधाएं हैं और न ही कोई फैकल्टी है। इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए सिर्फ पैसा उद्देश्य कुछ और नहीं कमाना है,लेकिन जो छात्र पढ़ रहे हैं उनके भविष्य का क्या होगा?
दूसरी बात यह है कि जब कोई नया कृषि मंत्री अपने निर्वाचन क्षेत्र में एक कृषि महाविद्यालय शुरू करता है लेकिन उसे शुरू करते समय सुविधाओं के बारे में नहीं सोचता। या उसे लागू नहीं करता है, तो मौजूदा प्राध्यापक वर्ग उसी स्थान पर पर्याप्त नहीं है। शिक्षा की गुणवत्ता क्या होगी? इसे देखकर पता चलता है कि कृषि शिक्षा कितनी उपेक्षित है।

आज कृषि शिक्षा के छात्रों का भविष्य क्या है? हर साल हजारों छात्र निकल रहे हैं। क्या सचमुच उन्हें कृषि का ज्ञान मिल रहा है? क्या वे अपने भविष्य में इससे लाभान्वित हो सकते हैं? या फिर उन्हें नौकरी की जरूरत पड़ेगी? या क्या वे सचमुच घर जाकर अपने किसान पिता को सलाह दे पाएंगे? अगर इस सवाल का जवाब नहीं है तो फिर इस शिक्षा का मतलब क्या है? क्या यह सिर्फ बाजार कर पैसा कमाने के लिए है? एक और बात यह है कि रोजगारोन्मुख शिक्षा एक सामाजिक दृष्टिकोण बन गया है। कृषि शिक्षा के साथ ही, ग्रेजुशन या ग्रेजुशन के बादशिक्षा के लिए राज्य में केवल 800 सीटें हैं, जिसमें प्रायव्हेटकॉलेजों को ICAR की प्रवेश प्रक्रिया के लिए वर्जित किया गया है। उन्होंने कॉलेज तो अपने पास रखा है लेकिन वे ये सुविधाएं नहीं दे सकते क्योंकि उन्हें ICAR मान्यता नहीं चाहिए और वे उस छात्र के लिए लड़ भी नहीं सकते।

सवाल एमएससी का है, क्योंकि शिक्षा लेने के बाद नौकरी की कोई गारंटी नहीं होती, इसलिए छात्र एमपीएससी की ओर रुख करते हैं। लेकिन जब यह सब हो रहा है, तो कृषि शिक्षा और अनुसंधान को किनारे कर दिया गया है और ये छात्र कृषि से कोसों दूर हैं। हरसाल कृषि उद्योग के क्षेत्र में कृषि शिक्षा लेने वाले विद्यार्थियों की संख्या नगण्य है। जो छात्र वास्तव में कृषि के क्षेत्र में काम करना चाहते हैं, उन्हें अवसर नहीं मिल पाता है। क्योंकि जो छात्र कृषि विश्वविद्यालयों में एमएससी के लिए प्रवेश लेते हैं वे एमपीएससी करते नजर आते हैं। तो संशोधन और शिक्षा दोनों प्रभावित होते हैं। यह तो माना जा सकता है कि एमएससी करने से नौकरी नहीं मिलती। शिक्षा नौकरी के लिए नहीं है। शिक्षा हमारे विकास के लिए है, हमारे आस-पास के लोगों के विकास के लिए है। इसलिए जो छात्र एमएससी करना चाहते हैं उनको इस कारण स्थान नहीं मिलता है। एक और बात यह है कि एमएससी और आचार्य डिग्री पाठ्यक्रम पूरा करते समय, संशोधन पर खर्च किया जाता है। वर्तमान में, राज्य सरकार के पास इसे खर्च करने के लिए विश्वविद्यालय स्तर पर धन उपलब्ध नहीं है। कई किसानों के बच्चे अपना शोध समय पर पूरा नहीं कर पाते हैं।

अगर हम प्रायव्हेट कॉलेजों के मामले को देखें तो सरकार ने उन्हें सब कुछ ठीक से करने के लिए नियम तो दे दिए, लेकिन प्रोफेसर के तौर पर काम करने वाले युवाओं के बारे में कोई विचार नहीं किया गया। उनकी भर्ती प्रक्रिया, वेतन या सुविधाओं के बारे में कुछ नहीं किया गया।
कई प्रायव्हेटकॉलेज ऐसे हैं जहां फैकल्टी नहीं है या मौजूदा फैकल्टी गुणवत्तापूर्ण नहीं है। इस पर किसी का ध्यान नहीं है, जबकि यह सब हो रहा है, छात्रों के प्रवेश की संख्या तो बढ़ गई है लेकिन भर्ती प्रक्रिया कुछ नहीं हुई है। फिर सवाल यह है कि यह सब कैसे चलेगा?
यह भी एक सवाल है कि क्या MCAER (महाराष्ट्र राज्य कृषि शिक्षा एवं अनुसंधान परिषद पुणे) ये सब बातें देखता है या नहीं? अभी तक इसके समाधान के तौर पर कोई काम नहीं किया गया। किसी कॉलेज पर कोई कार्रवाई नहीं की गयी या छात्रों के दृष्टिकोण से कोई कदम नहीं उठाया गया।

यह भी देखना जरूरी है कि कृषि की शिक्षा लेने वाले छात्रों का भविष्य क्या है?, क्या कृषि क्षेत्र में उद्योग लगेंगे या उन्हें प्राथमिकता दी जाएगी? क्योंकि वर्तमान स्थिति में ऐसा नहीं लगता। क्योंकि कृषि क्षेत्र में कोई उद्योग ही नहीं है। जिसमें मुख्य रूप से कृषि शिक्षा प्राप्त करने वाले छात्रों को प्राथमिकता दी जाती है। जहां तक ​​फार्मेसी की बात है ,तो अगर कोई दवा कंपनी है या फार्मेसी से संबंधित कोई उद्योग है, तो फार्मेसी करने वाले लोगों को बुनियादी प्राथमिकता दी जाती है। अन्यथा हम वह उद्योग नहीं कर सकते। कृषि के संदर्भ में स्थिति अलग है, कोई भी कृषि सेवा केंद्र शुरू कर सकता है। कोई भी बीज कंपनी शुरू कर सकता है। कोई भी कृषि आदानों का उत्पादन या बिक्री कर सकता है। जिसके परिणामस्वरूप कृषि का अध्ययन करने वाले छात्रों को कोई प्राथमिकता नहीं मिलेगी। वहीं, उनके बिना इसे कोई भी कर सकता है। इसलिए उन्हें नौकरी भी नहीं मिलती है। इसके विपरीत, अगर उन्हें इस जगह पर मजबूर किया जाता है, तो कृषि शिक्षा के छात्रों को नौकरी का अवसर मिलेगा और अच्छे परिणाम भी मिलेंगे। यदि कोई कंपनी या कृषि-उत्पादक कंपनी बीज उत्पादन और बिक्री के व्यवसाय में लगी हुई है, तो उन्हें बीज के क्षेत्र में विशेषज्ञों की आवश्यकता है। यदि किसानों को अच्छे और गुणवत्तापूर्ण उत्पाद उपलब्ध कराने हैं तो जो लोग जैविक उर्वरक और जैव-उर्वरक का निर्माण और बिक्री करने जा रहे हैं, उनके पास ऐसे विशेषज्ञ होने चाहिए। यह सब बताने का उद्देश्य यह है कि कृषि शिक्षा प्राप्त करने वाले छात्रों को भविष्य में प्राथमिकता मिलनी चाहिए ताकि कृषि शिक्षा से कृषक समुदाय को लाभ हो।

अगर हम इन सभी चिजों पर सही मायने में विचार करें तो कृषि शिक्षा और अनुसंधान दूरदर्शी है। लेकिन इस स्थिति को अब बदलने की जरूरत है क्योंकि अगले 3-4 वर्षों में बहुत अलग परिणाम देखने को मिलेंगे। यह सब सामने लाने का प्रयास किया गया है ताकि लोगों को वास्तविकता का पता चल सके। इस पर सभी क्षेत्रों को विचार करने की आवश्यकता है। राजनीतिक उद्देश्यों एवं स्वार्थों को एक तरफ रख कर निर्माण को बढ़ावा देना आवश्यक है तभी भविष्य में कृषि क्षेत्र बचेगा और कृषि क्षेत्र के अच्छे दिन आयेंगे।

लेखक : डॉ. अनंत उत्तमराव इंगळे,

( Ph.D. Genetics and Plant Breeding MPKV Rahuri)

संचालक: विदर्भ कृषि विकास सोसायटी चिखली, बुलढाणा
agricultural education day
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