किसानों को दलहन उत्पादन क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने के लिए सरकार लगातार प्रयासरत है. साथ ही किसानों को अधिक उत्पादन देने वाली अच्छी दाल की किस्मों की खेती के लिए भी प्रोत्साहित किया जा रहा है. जब बात दालों की खेती की आती है, तो भारत में अरहर दाल बहुतायत में उगाई जाती है. भारत दुनिया का 85% अरहर उत्पादन करता है. अरहर को दालों का राजा भी कहते हैं क्योंकि यह प्रोटीन, खनिज, कैल्शियम, लोहा, कार्बोहाइड्रेट और प्रोटीन से भरपूर है. महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, कर्नाटक और गुजरात में इसकी खेती की जाती है. अरहर दाल दोनों शुष्क और नमी वाले स्थानों में उत्पादित होती है. इसे अच्छी सिंचाई के साथ सूर्य की ऊर्जा भी आवश्यक है. इसलिए इसकी बुवाई जून से जुलाई के महीने में की जाती है.
खेतों में अरहर की बुवाई करने के बाद, खरपतवारों को उखाड़कर जमीन में ही दबा दें. अरहर की फसल को बुआई के 30 दिन बाद फूल आने पर पहली बार सिंचाई करें. फसल में फली आने के 70 दिन बाद दूसरी सिंचाई करनी चाहिए. अरहर की सिंचाई बारिश पर निर्भर करती है, लेकिन कम बारिश होने पर भी फसल को बुआई से 110 दिन बाद भी पानी देना चाहिए. अरहर में बीमारियों और कीटों की निगरानी करते रहें और जैविक कीटनाशकों का ही उपयोग करें.
कैसे मिलेगी बढ़िया दाल
अरहर अच्छी उपज देने के लिए रेतीली दोमट मिट्टी या मटियार दोमट मिट्टी में उगाया जा सकता है. अरहर की बुवाई से पहले खेतों में गोबर की कंपोस्ट खाद लगाकर मिट्टी को पोषण दें. खेत में गहरी जुताई के बाद जल निकासी सुनिश्चित करें, क्योंकि जलभराव अरहर को खराब करता है. अरहर की बुवाई जून-जुलाई के मौसम में पहली बारिश पड़ते ही या जून के दूसरे सप्ताह से शुरू करें. बुवाई के लिये अरहर की मान्यता प्राप्त उन्नत किस्मों को ही चुनें, क्योंकि यह गुणवत्तापूर्ण उत्पादन देगा. खेतों में बुवाई से पहले बीज उपचार भी करना आवश्यक है ताकि कीट-रोग फसल में नहीं फैल सकें.