परिचय
चिरकाल से वैश्विक स्तर पर मशरूम का विविध तौर-तरीकों से लघु स्तर पर उत्पादन किया जाता रहा है। इसमें निहित नगिनत पोषक तत्वों और अत्यंत कम लागत में तैयार होने की क्षमता के कारण वर्तमान दौर में भी इसकी लोकप्रियता एक पोषक आहार के तौर पर ही नहीं बल्कि लाभदायक उत्पाद के रूप में भी काफी तेजी से बढ़ी है। देश की बहुसंख्यक शाकाहारी आबादी के लिए प्रोटीनयुक्त उत्तम वैकल्पिक आहार के रूप में मशरूम को प्रत्येक वर्ग के लोगों द्वारा पसंद किया जाने लगा है। इस वास्तविकता से इंकार नहीं किया जा सकता है कि खेती-किसानी में मौसम और मानसून की मेहरबानी तथा अधिक उत्पादन होने पर कई बार लागत से भी कम कीमत की वसूली जैसे कारणों से परंपरागत फसलों की खेती करते हुए व्यावसायिक महत्व के अन्य उत्पादों की ओर किसानों का ध्यान गया है। कहने की जरूरत नहीं कि ऐसे प्रमुख वैकल्पिक कृषि उत्पादों में मशरूम का नाम उल्लेखनीय है।
मशरूम उत्पादन
मशरूम उत्पादन में सबसे खास बात यही है कि वर्षभर किसी भी मौसम में इसका उत्पादन किया जा सकता है। इतना ही नहीं अन्य फसलों की भांति इसके उत्पादन में लागत कहीं कम आती है। इसके पीछे मूल कारण है कृषि अपशिष्टों/अवशेषों पर इसके उगने की अद्भुत क्षमता। इसी तरह से इसके उत्पादन में श्रम लागत अन्य कृषि कार्यों/फसलों की अपेक्षा कहीं कम लगती है। बहुत कम तकनीकी जानकारी या प्रशिक्षण के बिना कोई भी व्यक्ति आसानी से इसके उत्पादन के काम से जुड़ सकता है। इसी तरह से इसके अन्य फायदों पर गौर करें तो स्पष्ट देखने में आता है कि लागत की तुलना में कहीं अधिक मुनाफा इससे कमाया जा सकता है। दूसरे शब्दों में यह नगदी फसल है और अत्यंत कम समय में तैयार भी हो जाती है।
यहां पर यह चर्चा करना भी प्रासंगिक होगा कि भारत में पिछले कई दशकों के दौरान मशरूम उत्पादन की मांग में न सिर्फ बढ़ोतरी देखने को मिली है बल्कि उत्पादकता में भी कई गुना तेजी आई है। वर्ष 1960 के दशक की बात करें तो उस समय महज 2-3 किलोग्राम मशरूम का उत्पादन प्रति 100 किलोग्राम कम्पोस्ट से प्राप्त हो पाता था, जो कि अब बढ़कर लगभग 20 किलोग्राम प्रति 100 किलोग्राम कम्पोस्ट के उच्च स्तर को छू रहा है। यह उपलब्धि हासिल करने में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के अंतर्गत कार्यरत खुम्ब अनुसंधान निदेशालय, सोलन का महत्वपूर्ण योगदान है। यहां पर कार्यरत वैज्ञानिकों के सतत् प्रयासों और मेहनत का ही यह सुपरिणाम कहा जा सकता है। इस दौरान कई ऐसी मशरूम की किस्में विकसित हुई हैं, जिनमें पोषक तत्वों की प्रचुरता के साथ कम से कम अवधि में अधिक उत्पादन देने की क्षमता निहित है।
मशरूम उत्पादन की यह भी एक विशेषता है कि इसका परंपरागत तरीकों के अलावा हाई टेक प्रणाली से भी व्यावसायिक तौर पर उत्पादन किया जा सकता है। इसके उत्पादन के लिए
लम्बे-चौड़े खेतों की जरूरत नहीं होने की वजह से ग्रामीण ही नहीं शहरी क्षेत्रों में भी युवाओं द्वारा इसे आजीविका अर्जन के माध्यम के रूप में अपनाने के उदाहरण दिन-प्रतिदिन सामने आ रहे हैं। इस काम को शुरू करने में कम से कम निवेश, अंशकालिक समय की मांग तथा न्यूनतम रखरखाव जैसे अन्य कई कारण भी गिनाये जा सकते हैं, जिनके कारण बड़े पैमाने पर लोग इस ओर आकर्षित हो रहे हैं। देश में तमाम सरकारी संस्थानों द्वारा अत्यंत रियायती फीस या निशुल्क तौर पर मशरूम उत्पादन का प्रशिक्षण भी समय-समय पर दिया जाता है। परिषद की लोकप्रिय द्विमासिक हिन्दी पत्रिका ‘फल फूल’ के इस अंक को पूर्णतः मशरूम उत्पादन और इससे संबंधित समस्त जानकारियों से परिपूर्ण करने का प्रयास किया गया है। उम्मीद है कि पत्रिका का यह ‘मशरूम विशेषांक’ जानकारियों से समृद्ध सिद्ध होगा और इस व्यवसाय को अपनाने के उत्सुक लोगों के मार्गदर्शन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।