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Home » घर पर मुर्गी पालन से अधिक लाभ
पशु पालन

घर पर मुर्गी पालन से अधिक लाभ

Neha SharmaBy Neha SharmaSeptember 7, 2023No Comments6 Mins Read
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भारत जैसे विकासशील देश में जनसंख्या का एक बहुत बड़ा हिस्सा ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करता है। यहाँ के निवासियों का जीवन स्तर शहरों में रहने वालों की तुलना में अपेक्षाकृत समृद्ध नहीं है। विगत वर्षों में भारत सरकार ने कुक्कुट पालन को ग्रामीण अर्थव्यवस्था के सुधारने का एक उत्तम साधन मानते हुए इसके विकास हेतु अनेक प्रयास किए है। आज मुर्गीपालन एक संगठित उद्योग का रूप ले चुका है।

वैज्ञानिकों द्वारा किए जा रहे अनुसंधानों से विकसित नवीनतम प्रौद्योगिकी को अपनाने से मुर्गीपालन के क्षेत्र में उल्लेखनीय सफलता प्राप्त हुई है। व्यवसायिक प्रजातियों के विकास से प्रतिवर्ष प्रति व्यक्ति अण्डों एवं मास की उपलब्धता 1961 में 7 अंडे व 188 ग्राम से बढ़कर वर्तमान में लगभग 45 अंडे व 1000 ग्राम अनुमानित है। यद्यपि इसमें वास्तविक वृद्धि हुई है पर ग्रामीण लोगों को इसकी उपलब्धता कम व अत्यंत उच्च कीमतों पर होती है।

भारत में कुपोषण एवं गरीबी की समस्या को दूर करने के लिए पारम्परिक मुर्गी पालन अथवा घर के पिछवाड़े मुर्गी पालन की यह पद्धति प्राचीन काल से प्रचलित है। इसमें प्राय: 5-20 मुर्गियों का छोटा सा समूह एक परिवार के द्वारा पाला जाता है, जो घर एवं उसके आस-पास में अनाज के गिरे दाने, झाड़-फूसों के बीच कीड़े-मकोड़े, घास की कोमल पत्तियाँ तथा घर या होटल/ढाबे की जूठन आदि खाकर अपना पेट भरती है। केवल प्रतिकूल परिस्थितयों में निम्न कोटि का थोड़ा सा अनाज खिलाने की आवश्यकता होती है। इसके रात्रि विश्राम के लिए घर के टूटे-फूटे भाग व खंडहर काम में लाए जाते है। इस प्रकार घर के रखरखाव एवं खाने-पीने पर कोई ख़ास खर्च नही आता है। साथ ही ग्रामीण परिवारों के लिए उच्च गुणवत्ता का प्रोटीन स्रोत उपलब्ध हो जाता है एवं कुछ मात्रा में मांस व अंडा बेच लेने से परिवार को अतिरिक्त आमदनी हो जाती है।

नस्ल का चुनाव

वास्तव में पारम्परिक कुक्कुट पालन की भारत में अधिक प्रासंगिकता है। इस पद्धति से मुर्गी पालन के लिए उपलब्ध 11 प्रजातियों में वनराजा, ग्रामप्रिया, कृष्णा जे, नन्दनम-ग्रामलक्ष्मी प्रमुख हैं। देशी प्रजाति के पक्षियों की वृद्धि दर व उत्पादन कम होने की वजह से इनकी लोकप्रियता घट गई। केन्द्रीय पक्षी अनुसंधान संस्थान इज्जतनगर, बरेली में देशी और उन्नत नस्ल की विदेशी प्रजाति की मुर्गियों को मिलाकर कुछ संकर प्रजातियाँ विकसित की गई है। इनमें कैरी श्यामा, कैरी निर्भीक, हितकारी एवं उपकारी प्रमुख हैं ये प्रजातियाँ भारत के वातावरण एवं परिस्थितियों में अच्छा उत्पादन देने में सक्षम साबित हुई हैं और इनकी वार्षिक उत्पादन क्षमता लगभग 180-200 अंडे की है।

आहार व्यवस्था

अच्छा उत्पादन एवं अधिक लाभ प्राप्त करने के लिए कुक्कुट पालकों को मुर्गियों के आहार पर ध्यान देना चाहिए। प्राय: देखा गया है कि किसी विशेष मौसम में उत्पादित होने वाला एक विशेष प्रकार का अनाज ही मुर्गियों को खिलाया जाता है, जिससे पक्षियों को आवश्यक पोषक तत्व उचित मात्रा में प्राप्त नहीं होते है। अत: पक्षियों को वर्ष के दौरान पैदा होने वाले अनाजों को मिश्रित करके खिलाना चाहिए। यदि सम्भव हो तो सम्पूर्ण आहार के रूप में उन्हें प्रोटीन, खनिज लवण व विटामिन भी देना चाहिए। सम्पूर्ण आहार की मात्रा क्षेत्रीय उपलब्धता के आधार पर घटाई या बढ़ाई जा सकती है।

मुर्गी आहार बनाने की विधि

खाद्य अवयव

मांस के लिए मुर्गी आहार

मुर्गियों को बेचने से 10 दिन पहले देने वाला आहार

चूजे बढ़ने के लिए आहार

चूजों को डेढ़ माह बाद वाला आहार

अंडा देने वाली मुर्गी का आहार

मक्का

 

44.25

44.10

32.00

27.00

30.80

ज्वार

–

–

11.00

–

–

चावल की पॉलिस

10.00

20.00

16.80

40.00

35.00

मूंगफली की खल

15.00

11.00

11.00

15.00

–

सूरजमुखी की खल

15.00

11.00

15.00

5.00

11.50

सरसों की खल

–

–

11.00

5.00

11.50

मछली का चूर्ण

6.00

5.50

12.00

6.00

4.00

मांस का चूर्ण

6.00

5.50

–

–

–

एल-लॉसीन

0.15

–

–

–

–

वसा

2.00

1.25

–

–

–

हड्डी का चूरा

0.75

0.60

0.70

0.60

1.00

चूना (खड़िया)

0.50

0.70

–

0.80

5.60

नमक

0.25

0.25

0.40

0.40

0.05

खनिज लवण

0.10

0.10

0.10

0.10

0.10

प्रजनन व्यवस्था

प्राय: ऐसा देखा जाता है, कि एक बार मुर्गी खरीदने के बाद एक झुंड में उन्हीं से बार-बार प्रजनन करवाया जाता है, जिससे इन ब्रीडिंग (अंत: प्रजनन) के दुष्प्रभाव सामने आते हैं। इससे अण्डों की संख्या निषेचन एवं प्रस्फुटन में कमी आती है तथा बच्चों की मृत्यु दर बढ़ती है। अत: इन्हें प्रतिवर्ष बदल देना चाहिए। इससे अंडा उत्पादन व प्रजनन क्षमता में वृद्धि के साथ-साथ चूजों की मृत्यु दर में कमी आती है।

मुर्गियों की सुरक्षा के आवश्यक उपाय

बीमारियों से बचाव के सम्बन्ध में जानकारी रखना प्रत्येक मुर्गीपालक के लिए आवश्यक हो जाता है।

  1. मुर्गियों को तेज हवा, आंधी, तूफ़ान से बचाना चाहिए।
  2. मुर्गियों के आवास का द्वार पूर्व या दक्षिण पूर्व की ओर होना अधिक ठीक रहता है जिससे तेज चलने वाली पिछवा हवा सीधी आवास में न आ सके।
  3. आवास के सामने छायादार वृक्ष लगवा देने चाहिए ताकि बाहर निकलने पर मुर्गियों को छाया मिल सके।
  4. मुर्गियों का बचाव हिंसक प्राणी कुत्ते, गीदड़, बिलाव, चील आदि से करना चाहिए।
  5. आवास का आकार बड़ा होना चाहिए ताकि उसमें पर्याप्त शुद्ध हवा पहुंच सके और सीलन न रहे।
  6. मुर्गियां समय पर चारा चुग कसे इसलिए बड़े-बड़े टोकरे बनाकर रख लेने चाहिए।
  7. कुछ व्याधियां मुर्गियों में बड़े वर्ग से फैलकर भंयकर प्रभाव दिखाती है जिसमें वे बहुत बड़ी संख्या में मर जाती है। अत: बीमार मुर्गियों को अलग कर देना चाहिए। उनमें वैक्सीन का टीका लगवा देना चाहिए।
  8. मुर्गी फ़ार्म की मिट्टी समय-समय पर बदलते रहना चाहिए और जिस स्थान पर रोगी कीटाणुओं की संभावना हो वहां से मुर्गियों को हटा देना चाहिए।
  9. एक मुर्गी फ़ार्म से दूसरे मुर्गी फ़ार्म में दूरी रहनी चाहिए।
  10. मुर्गियां खरीदते समय उनका उचित डॉक्टरी परिक्षण करा लेना चाहिए तथा नई मुर्गियों को कुछ दिनों तक अलग रखकर या निश्चय कर लेना चाहिए कि वह किसी रोग से ग्रस्त तो नहीं है। पूर्ण सावधानी बरतने पर भी कुछ रोग हो ही जाए तो रोगानुसार चिकित्सा करें।

रोगों से बचाव एवं रोकथाम

मुर्गियों को विभिन्न प्रकार से संक्रामक रोगों से बचाने के लिए कुक्कुट पालकों को मुर्गियों में टीकाकरण अवश्य करा देना चाहिए। जहां तक संभव हो एक गाँव या क्षेत्र के सभी कुक्कुट पालाकों को एक साथ टीकाकरण करवाने का प्रबंध करना चाहिए, इससे टीकाकरण की लागत में कमी आती है।

बर्ड फ्लू जैसी भयानक बीमारियों से बचने के लिए मुर्गियों को बाहरी पक्षियों/पशुओं के संपर्क से बचाना चाहिए। यदि कोई मुर्गी बीमार होकर मर गई हो तो उसे स्वस्थ पक्षियों से तुरंत अलग कर देना तथा निकटस्थ पशु चिकित्क्स से सम्पर्क कर मरी मुर्गी का पोस्टमार्टम करवाकर मृत्यु के सम्भावित कारणों का पता लगाना चाहिए तथा एनी मुर्गियों को बचाने के लिए उपयुक्त कदम उठाना चाहिए। इस प्रकार आधुनिक तकनीक अपनाकर पारम्परिक ढंग से मुर्गी पालन कर ग्रामीण परिवारों में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के साथ-साथ अतिरिक्त आय अर्जित की जा सकती है।

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Neha Sharma
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