Pink bollworm : भारत में कपास की खेती विशेष रूप से उल्लेखनीय है। भारत के कुल कपास उत्पादन में महाराष्ट्र की हिस्सेदारी सबसे अधिक है। ऐसी स्थिति में राज्य में कपास की खेती का क्षेत्र भी विशेष रूप से उल्लेखनीय है। कपास की फसल के लिए सबसे बड़ा ख़तरा पिंक बॉलवर्म है। ये पिंक बॉलवॉर्म पतंगे कपास की फसल की विशिष्ट पत्तियों और फूलों पर बैठते हैं। ये कपास कीट अमावस्या के दिन अपने अंडे देते हैं। इन अंडों से लगभग दो से तीन दिन में गुलाबी सुंडी निकल आती है। बॉलवॉर्म सबसे अधिक नुकसान पहुंचाने वाला कीट है। बॉलवर्म 30-50% फसल को नुकसान पहुंचाता है। इसलिए समय रहते फसल को कीड़ों से बचाने के उपाय करने चाहिए।
फसल मौसम के अंत में गहरी जुताई करनी चाहिए। इसलिए, पतंगे की कोशिकाएँ सूरज की रोशनी से नष्ट हो जाएँगी।
मौसम के दौरान (जून से जुलाई के पहले सप्ताह तक) समय पर बुआई करनी चाहिए।
कपास के कीटों के प्राकृतिक शत्रुओं के संरक्षण के लिए कपास की फसल के आसपास मक्का, लोबिया, मूंगफली जैसी मिश्रित फसलें लेनी चाहिए।
कपास के खेतों में पक्षियों को समायोजित करने के लिए प्रति एकड़ कम से कम 5 पक्षीघर बनाए जाने चाहिए। यानी पक्षी उस पर बैठेंगे और खेत के कीडे खाएंगे।
अन्य रस चूसने वाले कीड़ों का प्रकोप न बढ़े इसलिए यरेथ्रोइड वर्ग के कीटनाशकों जैसे साइपरमेथ्रिन, लैम्ब्डा साइहलोथ्रिन, फेनवेलरेट का छिड़काव करें। इसको कपास में 100 से 120 दिनों तक लागू नहीं किया जाना चाहिए। फसल बुआई के 90 से 120 दिन बाद प्रति लीटर पानी में इंडोक्साकार्ब (14.5 एस.सी.) 1 मिली या इमामेक्टिन बेंजोएट (5 %एस.जी.) 0.5 ग्राम या क्लोरपाइरीफोस (20 % ईसी) 2.5 मिली का छिड़काव करें।