Sericulture Campaign : मौसम में अचानक और अप्रत्याशित बदलावों ने पारंपरिक कृषि से निश्चित उत्पन्न मिलना मुश्किल हो गया है। ऐसे में रेशम उत्पादन से आर्थिक स्थिरता प्राप्त करने में मदद मिलेगी, इसलिए रेशम उत्पादन का विकल्प किसानों के लिए उपलब्ध है। रेशम उत्पादन व्यवसाय कृषिपूरक व्यवसाय है। यह व्यवसाय बहुत कम लागत और किसानों के लिए उपलब्ध सामग्री से किया जा सकता है। साथ ही इस व्यवसाय के माध्यम से बेरोजगारों को रोजगार भी उपलब्ध होता है। अगर किसान प्रशिक्षण लें तो आधुनिक तरीके से रेशम उत्पादन व्यवसाय करके लाखों रुपये कमा सकते हैं।
महाराष्ट्र और केंद्र सरकार ने किसानों को रेशम उत्पादन की ओर प्रोत्साहित करने के लिए महारेशिम अभियान शुरू किया है। इस अभियान के तहत राज्य के विभिन्न जिलों में महारेशिम अभियान चल रहा है। जिला रेशम कार्यालय ने अपील की है कि ज्यादा से ज्यादा किसान इस अभियान में भाग लें। सरकार के वस्त्र उद्योग एवं रेशम निदेशालय के तहत रेशम उत्पादन के प्रति जागरूकता पैदा करने के लिए राज्य के विभिन्न जिलों में महारेशिम अभियान चलाया जा रहा है।
रेशम उद्योग में दो योजनाएं हैं, मनरेगा और नानाजी देशमुख कृषि संजीवनी योजना। मनरेगा से हर एक किसान को 3 वर्ष में कुशल एवं अकुशल के रूप में प्रति एकड़ कुल3 लाख 97 हजार 335 रुपए की धनराशि दी जाती है। शहतूत नर्सरी और कीट नर्सरी सभी इसमें हैं और किसान को इस पूरक व्यवसाय को पंजीकृत करना होगा। यह महारेशिम पंजीकरण अभियान उन किसानों के लिए है जो रेशम उत्पादन में लगे हुए हैं या जुड़ना चाहते हैं। इसे 20 दिसंबर तक लागू किया जाएगा।
केंद्र सरकार के माध्यम से शुरू की जा रही सिल्क समग्र के जरिए भी सब्सिडी का लाभ उठाया जा सकता है। इस योजना से शहतूत रोपण के लिए 45 हजार रुपये, ड्रिप सिंचाई के लिए 45 हजार रुपये मिलेंगे। प्रति एकड़, पालन गृह के लिए दो लाख 43 हजार, पालन सामग्री के लिए 37 हजार 500 रुपये, बंध्याकरण सामग्री के लिए तीन हजार 750 रुपये खर्च दिया जाता है। अधिक जानकारी के लिए जिला रेशम कार्यालय से संपर्क करें।

