भारत का दुग्ध उत्पादन में प्रथम स्थान है, ये उत्पादक्ता के कारण नहीं बल्कि पशु संख्या अधिक होने के कारण है। यह वर्ष 2015-16 में 140 मिलियन मीट्रिक टन हो गया है। अन्य देशों कि अपेक्षाकृत यहाँ पर प्रति पशु दुग्ध उत्पादन बहुत कम है, इसके बावजूद दुग्ध उत्पादन की वृद्धि दर 3.5-4.5 प्रतिशत के करीब है। इस उत्पादन के हिसाब से प्रति व्यक्ति दूध उपलब्धता वर्ष 2015-16 में 320 ग्राम पहुँच गईं है लेकिन फिर भी अन्य देशों के अपेक्षाकृत कम है। दुग्ध उत्पादन में वृद्धि के लिए जो अत्यन्त महत्वपूर्ण पहलू है, वो है दुधारू पशुओं का आहार। पशुओं को नियंत्रित रूप में सर्वोत्तम आहार एवं चारा खिलाना चाहिए। जहाँ तक संभव हो स्वयं की उपलब्ध जमीन पर उगाया हुआ एवं सही समय पर काटा हुआ चारा दिया जाना चाहिए।
दूध देनेवाले पशुओं को कौन-कौन से चारे एवं दाने देने चाहिए और कौन से नहीं वो निम्नलिखित है:
दूध देने वाले पशुओं को खिलाने-योग्य चारे
लूसर्न और बरसीम -ये दोनों तरह के चारे स्वास्थ्य की दृष्टि से उपयोगी है। इनमें प्रोटीन की मात्रा 15-20 प्रतिशत होती है।
दुब, हलीम और झरूआ आदि अन्य प्रकार की घासे अच्छी होती हैं। इनमें दूब सर्वश्रेष्ठ है। झरूआ भी एक अच्छी और दानेदार घास है।
जौ तथा जई की चरी – ये पौधे दुग्धवर्धक हैं। जौ का तो सूखा भूसा भी खिलाया जा सकता है, किंतु जई का भूसा कम अच्छा होता हैं।
ज्वार की चरी – यह चारों में सर्वोत्तम हैं, क्योंकि इसे हरी, सूखीं या साइलेज-रूप में सभी तरह से खिलाते हैं। परन्तु हरी चरी ही उत्तम चारा माना जाता है।
मक्का- गर्मी के दिनों में साइलेज के अतिरिक्त यही। एक हरे चारा के रूप में उपलब्ध हो सकती है जिसे पानी व का प्रबंध करके चैत्र माह में बो दें और ज्येष्ठ से भाद्र पद तक ग्वार और लौबिया के पौधों के साथ मिलाकर खिलाये।
ग्वार और लोबिया – चैत से भादो माह तक इसे बोये और मक्के की चरी के साथ खिलाये।
सरसों की चरी- हरी नरम और सिंगरीदार सरसों को । दूसरे चारों के साथ मिलाकर खिलाने पर दूध की मात्रा में बढ़ोत्तरी होती हैं एवं गर्म-तासीर होती है।
मटर – नर्म फलियों के भर आने पर इसे खिलाये। इसमें कार्बोहाइड्रेट बहुत होते हैं, एवं इसे जौ आदि के चारे या भूसे के साथ में मिलाकर ही खिलाना चाहिये।
चना और मसूर – चने के पौधे में क्षार की बहुत अधिकता होने के कारण इसे दूसरे चारों के साथ मिलाकर ही खिलाना चाहिये।
उरद तथा मूंग – इसे भादो से कार्तिक माह के बीच बोना चाहिए और नरम फल लग जाने के बाद अन्य चारों के साथ मिलाकर खिलाये। क्योंकि इसमें प्रोटीन की मात्रा बहुत अधिक होती है जो की दूध की पौष्टिकता को बढ़ाता है।
दूध देने वाले पशुओं को खिलाने योग्य दाने
गेहूं का दलिया और चोकर बहुत ही उपयोगी हेता है।
खली: सरसों और लाही, तिल, मूंगफली, अलसी तथा बिनौले आदि को खिलाने से दूध की मात्रा एवं पौष्टिकता में वृद्धि होती है।
चने का दाना और चूनी मिली हुई भूसी, अरहर की चुनी भूसी, मूंग की चुनी भूसी, मसूर की चूनी भूसी इन सभी को मिलाकर खिलाना चाहिये क्योंकि इन सभी में प्रोटीन प्रधान तत्व अत्यधिक होते हैं और भूसी में फासफोरस का काफी अंश होता है जो दूध की उत्पादन, क्षमता बढ़ाने में सहायक होता है।
जौ का दलिया खिलाना अत्यन्त लाभकारी माना जाता है।
गुड़ और शीरा थोड़ी मात्रा में खिलाना हितकर होता है।
पकाई हुई चीजें जैसे-दाल का पानी, चावल का माँड़, रोटी और थोड़ा-सा दलिया भी दिया जाना चाहिये।
कुछ मात्रा में ग्वार को दलकर और उबालकर या भिगोकर देना चाहिये।