महाराष्ट में केले उत्पादक किसानों की समस्या दिन-ब दिन बढ़ती ही जा रही हैं। केले के बागों में रोग के कारण काफी नुकसान हुआ और अब ये ठंड के चलते केले की मांग में भारी गिरावट आई हैं। जलवायु परिवर्तन का असर पेड़ पौधों पर भी होने लगा हैं। जैसे तैसे किसानों ने केले के बागों में लगे रोगो को दूर करने के लिए दवाइयों का छिड़काव कर बागों को बचाया। तो वहीं अब जलवायु परिवर्तन के चलते ग्राहकों द्वारा केले की मांग बड़े पैमाने पर काम हो रही हैं। इसका सीधा असर केले के किसानों पर हो रहा हैं।
३ मौसमों में उत्पादन की जाने वाली एकमात्र फसल :-
केला ही एकमात्र ऐसी फसल हैं जो ३ मौसम में उत्पादित की जा सकती हैं। परन्तु इस वर्ष फसल के शुरुवात से समस्या कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। बेमौसम बारिश के बाद जलवायु परिवर्तन के कारण केले की फसलों पर कीड़ो और रोगों का प्रकोप बढ़ गया था। किसान किसी तरह इससे सम्भल ही पाए थे की कड़ाके की ठंड ने इसकी मांग कम कर दी। किसानों को प्रति वर्ष ६ से ७ किलों प्रति वर्ष औसतन ५० रुपये का मूल्य मिलता था। परन्तु इस वर्ष यह आधा ही रहा।
इस संकट का असर भविष्य की फसलों पर भी होगा :-
कृषि वैज्ञानिकों का मानना हैं की इस वर्ष होने वाली जलवायु परिवर्तन का असर भविष्य में उत्पादित की जाने वाली फसलों पर भी हो सकता हैं। इसलिए इस ठंड के मौसम में फूल नहीं लगाने चाहिए। अधिक ठंड के कारण केले के फूल का गुच्छा पूरी तरह से विकसीत नहीं हो पता। ऐसे में किसानों को अपने बागों का ध्यान रखना होंगा।
ठंड का मौसम रबी की फसलों के लिए हैं पोषक :-
माना जाता हैं की ठंड का मौसम रबी की फसलों के लिए काफी पोषक होता हैं परन्तु इस वर्ष की ठंड ने रबी की भी फसलों को नुकसान पहुंचाया हैं। मराठवाड़ा में इस वर्ष फसले नष्ट हो रही हैं। इसका असर रबी सीजन की फसल पर भी पड़ रहा हैं। जिसके चलते किसानों को इस बात की चिंता सता रही हैं। की कही ज्यादा ठंड होने पर फसल बर्बाद न हो जाये। क्योंकि बढ़ते ठंड के कारण केले की फसलों पर सूखे के कारण कीड़े का प्रकोप बढ़ते देखे जा सका हैं। जिससे किसानों में फसलों को लगाने की चुनौती का सामना करना पड़ रहा हैं।